इस्लाम धर्म में मदरसे की पढ़ाई को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस्लाम धर्म को जानने के लिए मदरसे की पढ़ाई पढ़ना आवश्यक है. मदरसों में छात्रों को इस्लामी शिक्षा दी जाती है. इनमें कुरान, हदीस, फिकाह ( इस्लामी कानून ) और इस्लाम से जुड़े दूसरे विषयों की पढ़ाई होती है. दरअसल, मदरसों में दीनी तालीम (मजहबी शिक्षा) भी पढ़ाई जाती है. जिससे कि लोगों को इस्लाम धर्म के बारे में जानने में मदद मिलती है.
मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को मदरसे की डिग्रियां भी दी जाती हैं. इन डिग्रियों को पाने के बाद मदरसे से पढ़ने वाले बच्चे किसी मस्जिद के इमाम, मौलाना, मुफ्ती बनते हैं. वैसे तो मदरसे की शिक्षा हासिल करने के लिए उम्र की कोई तय सीमा नहीं है लेकिन सबसे पहली डिग्री मौलवी मुंशी को हासिल करने के लिए मदरसे में बच्चों की करीब 14 साल की उम्र को तय किया गया है. इसके बाद वह मदरसे की पढ़ाई को आगे पढ़ते हुए आगे की डिग्रियां हासिल कर सकता है.
मदरसे की यह होती है डिग्रियां
मौलवी मुंशी की डिग्री (हाई स्कूल) के बराबर मानी जाती है. जिसको पूरा करने के लिए 1 साल का समय लगता है.